टीबी के प्रति समाज का रवैया अभी भी ठीक नहीं है समाज या घर में अगर किसी व्यक्ति को टीबी हो जाती है तो परिवार वाले उन्हें घर से बहार निकाल देते है और ये समझते है की इनकी मौत निश्चित है जबकि ऐसा नहीं है। टीबी का सही समय पर इलाज लेने और पूरा कोर्स ले पर व्यक्ति पूरी तरह से टीबी मुक्त हो जाता है। वयस्क लडके लड़कियों के रिश्ते प्रभावित होते है जब उनको टीबी होती है तो जबकि टीबी कोई लाईलाज बीमारी नहीं है 6 से 12 महीने में टीबी का ईलाज प्रॉपर लेने से टीबी मरीज सही हो जाता है। टीबी से जुडी भ्रांतियाँ जब तक समाज में होगी तब तक टीबी रोग को पूरी तरह काबू पाना मुश्किल होगा।
टीबी के प्रति समाज में फैली भ्रांतियाँ
- कई लोग यह सोचते है कि ये तो गरीबो की बीमारी है जबकि ऐसा कदापि नहीं है। टीबी किसी को भी हो सकती है। स्वयं सुपर स्टार अमिताभ बच्चन को साल 2000 में टीबी हो गया था। हालाँकि कमजोर और अभावग्रस्त लोग जल्दी टीबी के चपेट में आ जाते है।
- कुछ लोगों का यह भी मानना है की टीबी पूरी तरह से खत्म नहीं होती है। जबकि ऐसा नहीं है टीबी का सही समय पर जांच और उपचार से टीबी पूरी तरह से ख़त्म हो जाती है।
- कई लोग यह भी मानते है की सरकारी अस्पताल में मिलने वाली गोली से प्राइवेट अच्छी होती है जबकि ऐसा बिलकुल नहीं है। सरकारी हॉस्पिटल में मिलने वाली गोली भी उतनी अच्छी होती है जीतनी प्राइवेट।
- बहुत से लोग थोड़े से ठीक होने ( आराम होने ) पर टीबी की दवाइयाँ बीच में ही छोड़ देते है। जिससे टीबी के बैक्टीरिया पूरी तरह से नहीं मरते है जसके कारण उन्हें फिर से टीबी होने का खतरा बाद जाता है।
- बहुत से लोग टीबी होने पर सरकारी अस्पताल में ईलाज नहीं करवाते है वे सोचते है की घर परिवार और समाज में लोगो को पता चल जायेगा। भेदभाव करेगा। जबकि टीबी का इलाज संभव है ये कोई लाईलाज बीमारी नहीं है। यही कारण है की सरकार को टीबी की सही जानकारी नहीं मिल पाती है। जिससे टीबी का प्रकोप और बढ़ते जाता है। मरीज को चाहिए की वे टीबी होने पर gov. हॉस्पिटल में रजिस्ट्रेशन करवाकर अपना ईलाज पूर्ण ले।
टीबी के इतिहास को देखा जाये तो यह चार हजार साल से भी अधिक पुरानी बीमारी है ,इस बीमारी से श्रीनिवास रामानुजम , कमला नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना जैसे ख्यात लोग भी इस बीमारी के चपेट में आये थे।
कई बॉलीवुड फिल्मों में भी टीबी का रेखांकन बड़ी भयावहता से किया किया गया वो काल्पनिक मात्र था। जैसे : - अमर-अकबर एंथनी ( 1977 ) , आह , हम लोग ( 1951 ) , बंदिनी ( 1963 ) , परिचय (1972 ) दूरदर्शन पर जब इन फिल्मों को दिखाया जाता था तो निचे की पट्टी में " टीबी का ईलाज संभव है " "टीबी लाईलाज नहीं है " जैसे सन्देश बताए जाते थे। ताकि टीबी के प्रति समाज में फैली भ्रांतियों को ख़त्म कर सकें।
No comments:
Post a Comment