फ्लोरोसिस ( Fluorosis ) तय मानक से अधिक फ्लोराइड युक्त पानी पिने से होने वाली एक बीमारी है इसमें लोगों के दाँत और हड्डियाँ टेढ़ी हो जाती है। फ्लोराइड एक मिनरल(Mineral) है जिसकी उचित मात्रा व्यक्ति के शरीर के लिए लाभदायक होती है लेकिन तय सिमा से अधिक फ्लोराइड युक्त पानी पिने से फ्लोरोसिस बीमारी होती है। विश्व में लगभग 22 देशों में फ्लोरोसिस पाया जाता है। भारत में 19 राज्यों (राजस्थान ,गुजरात ,आँध्रप्रदेश ,उत्तरप्रदेश ,मध्यप्रदेश ,तेलंगाना ,कर्नाटक ,उत्तराखंड ,हरियाणा आदि) में फ्लोरोसिस की समस्या है सबसे अधिक फ्लोरोसिस की समस्या राजस्थान में है यहाँ लगभग सभी जिलों में फ्लोरोसिस की समस्या है इसका कारण यहा पर सतही जल का आभाव और भूगर्भ जल पर अधिक निर्भर है। राजस्थान में फ्लोराइड 0.5 से 44 ppm तक पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। WHO के अनुसार 1.5 % तक पानी में फ्लोराइड की मात्रा सामान्य होती है।फ्लोराइड आवर्त सारणी में 9 वां तत्व है जो पृथ्वी पर। 0.08 % फ़्लोरिन के रूप में पाया जाता है जो अपनी आयनिक प्रवर्ति के कारण अन्य तत्वों के साथ मिलकर fluoride बनाता है।
NRCFPI कई वर्षो से फ्लोरोसिस से बचाव के लिए शोध कर रहा है। भारत सरकार के नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) द्वारा भी बहुत से प्रयास किए जा रहे है। वर्ष 2012 में राष्ट्रीय फ्लोराइड नियंत्रण एवं रोकथाम कार्यक्रम की शुरुआत की गई। खासकर राजस्थान में कई RO प्लांट लगाए गए। पानी में फ्लोराइड की मात्रा चेक करने के लिए सरकार द्वारा कई डिवाइस बनाई गई है जैसे मोबाइल डिवाइस इसके द्वारा पानी में कितनी फ्लोराइड की मात्रा है पता लगाया जा सकता है। बहुत से लोग पानी के कलर से भी पता कर लेते है की पानी में फ्लोराइड है।
फ्लोरोसिस एक प्राकृतिक समस्या है लेकिन इससे बचा जा सकता है इसके लिए हमें सतही जल को बचाना पड़ेगा। जिस क्षेत्र में फ्लोराइड की मात्रा अधिक हो वहां पर वाटर फ़िल्टर प्लांट लगाना ,कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम करना। विटामिन C वाले खाद्य पदार्थ और फलों के सेवन से फ्लोरोसिस के प्रभाव को कम कर सकते है। फ्लोरोसिस की जानकारी और समझदारी ही बचाव है।
Type of Fluorosis:
- Dental fluorosis - इस फ्लोरोसिस में लोगों के दाँत पिले मटमैले हो जाते है। जब पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.5 ppm से अधिक हो जाती है तो डेंटल फ्लोरोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है।
- Skeletal fluorosis - जब पीने के पानी में 3 ppm से अधिक फ्लोराइड की मात्रा हो जाती है तो स्केलेटल फ्लोरोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है। इसमें लोगों के हाथ या पैर झुक जाते है फ्लोराइड शरीर में उपस्थित हड्डियों से कैल्सियम को हटा देता है जिससे हड्डिया कमजोर होकर झुक जाती है और व्यक्ति अपाहिज हो जाते है।
Symptoms:
फ्लोरोसिस के प्राइमरी symptoms सामान्य होते है लोग इन्हे सामान्य समझ कर लम्बे समय तक ईलाज नहीं करवाते है जिससे फ्लोरोसिस का खतरा और बढ़ जाता है जैसे -
- भूख न लगना।
- थकान महसूस करना।
- स्केलेटल फ्लोरोसिस में व्यक्ति के हाथ या पैर धनुष के आकार के हो जाते है और उसमे दर्द होता है जिसे सही कर पाना मुश्किल होता है।
- डेंटल फ्लोरोसिस में व्यक्ति के दांत पीले और ख़राब हो जाते है।
- फ्लोरोसिस का प्रभाव आँखों पर भी पड़ता आंखे कमजोर होकर पिली पड़ जाती है।
फ्लोराइड से बचाव:
NRCFPI कई वर्षो से फ्लोरोसिस से बचाव के लिए शोध कर रहा है। भारत सरकार के नेशनल हेल्थ मिशन (NHM) द्वारा भी बहुत से प्रयास किए जा रहे है। वर्ष 2012 में राष्ट्रीय फ्लोराइड नियंत्रण एवं रोकथाम कार्यक्रम की शुरुआत की गई। खासकर राजस्थान में कई RO प्लांट लगाए गए। पानी में फ्लोराइड की मात्रा चेक करने के लिए सरकार द्वारा कई डिवाइस बनाई गई है जैसे मोबाइल डिवाइस इसके द्वारा पानी में कितनी फ्लोराइड की मात्रा है पता लगाया जा सकता है। बहुत से लोग पानी के कलर से भी पता कर लेते है की पानी में फ्लोराइड है।
फ्लोरोसिस एक प्राकृतिक समस्या है लेकिन इससे बचा जा सकता है इसके लिए हमें सतही जल को बचाना पड़ेगा। जिस क्षेत्र में फ्लोराइड की मात्रा अधिक हो वहां पर वाटर फ़िल्टर प्लांट लगाना ,कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम करना। विटामिन C वाले खाद्य पदार्थ और फलों के सेवन से फ्लोरोसिस के प्रभाव को कम कर सकते है। फ्लोरोसिस की जानकारी और समझदारी ही बचाव है।


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